बस यूँ ही
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बस यूँ ही

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तो एक और सफ़र ख़त्म हुआ… इस बार कई वर्ष बाद माँ के साथ लगभग बीस दिन रही… सिंगापुर से लेकर बेगूसराय तक का ये सफ़र बहुत ख़ूबसूरत रहा.. इस बार एक बात का एहसास हुआ कि एक बेटी से उसका मायका कोई नहीं अलग कर सकता… लड़कियों में अजीब शक्ति होती है और दिल में अनंत प्यार.. वे इतनी सशक्त होती हैं कि अपना घर छोड़ कर एक नए घर को अपना बना लेती हैं और दिल में उनके इतना प्यार होता है कि किसी के लिए कम नहीं पड़ता – ना मायके के लिए ना ससुराल के लिए | “अपना” घर छोड़ कर जाने में जहाँ वो जुदाई के ग़म में सराबोर रहती है वहीँ वो इस बात में ख़ुशी ढून्ढ लेती है कि “अपने” घर ही तो जा रही है | कश्मकश और इमोशनल तंगी तो हमेशा रहती है लेकिन इस बात में अपनी हँसी ढून्ढ लेती है कि मेरे तो दो-दो घर हैं | मायके और ससुराल के लोग जब लड़की को सम्मान और प्यार देते हैं, तो सारे कष्ट दूर हो जाते हैं |

उन अभागिनों के बारे में सोच कर दिल दहल जाता है जिन्हे परिवार का प्यार नहीं मिलता | ज़्यादा दुःख की बात ये है कि अक्सर महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन हो जाती हैं | छोटो छोटी बातों पर तुलना करना और हर बात पर किसी कि उल्लाहना करना – ये जनानियों के लिए आम बात है | पर उन्हें याद रखना चाहिए कि हर लड़की किसी की बेटी और बहू है तो वो सारा कुछ सब पर लागू होता है |

मेरा मानना है कि लड़कियों का आर्थिक और इमोशनल तौर पर स्वतंत्र होना बहुत ज़रूरी है | अगर आप ख़ुद इस लायक हैं कि अपना पेट पाल सकते हैं और इमोशनली स्ट्रांग हैं तो आप किसी पर ना रिसोर्सेज के लिए निर्भर होते हैं और ना रिडेम्पशन के लिए | आपका अपना अस्तित्व इतना ठोस होता है कि आपको किसे के अप्रूवल की ज़रुरत नहीं रहती |

ख़ैर, पर्सनली मेरी लाइफ में ऐसी कोई जद्दोज़हत नहीं हैं लेकिन मैंने बहुत लोगों को स्ट्रगल करते देखा है | मैं खुशनसीब हूँ कि मेरे दोनों परिवार मुझे प्यार और सम्मान देते हैं | बस एक नसीहत दूंगी अपनी सहेलियों को कि वैसे तो भारतीय संस्कृति में हमे सिखाया जाता है कि लड़कियों को ज़्यादा नहीं बोलना चाहिए | मैं कहती हूँ कि जहाँ ज़रुरत पड़े – अपने हक़ और सम्मान के लिए ज़रूर बोलें | मुझे तो यही सिखाया गया है और सौभाग्यवश मेरे दोनों घरों में अपनी बात रखनी की पूरी छूट है | चलिए सफ़र में हूँ, फिर मिलेंगे यहीं पर एक नए ब्लॉग के साथ, कुछ नयी बातों के साथ |

About Post Author

Surabhi Pandey

A journalist by training, Surabhi is a writer and content consultant currently based in Singapore. She has over seven years of experience in journalistic and business writing, qualitative research, proofreading, copyediting and SEO. Working in different capacities as a freelancer, she produces both print and digital content and leads campaigns for a wide range of brands and organisations – covering topics ranging from technology to education and travel to lifestyle with a keen focus on the APAC region.
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4 thoughts on “बस यूँ ही

  1. खुशनसीब हैं वे लड़कियाँ जिन्हें दोनों जहाँ प्यार देती है वैसे लड़कियों का तो दोनों जहॉं में जान होती है।

  2. Always love ur thoughts.
    Well said larkiyaan bhagyashali hoti hain. Unhen do gharon ka pyaar milta hai.

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