जो हुआ ठीक ही हुआ
गर तुम होते तो फिर कुछ कर बैठते
जो इस दिल को ठीक नहीं लगता
नागवार गुज़रता मुझे
जो हुआ ठीक ही हुआ
गर तुम होते तो फिर मेरी स्कर्ट की कद से मेरे
चरित्र को आंक बैठते
जो इस दिमाग को ठीक नहीं लगता
नागवार गुज़रता मुझे
जो हुआ ठीक ही हुआ
गर तुम होते तो फिर एक और गलती करते
कहते “सॉरी शोना, बहक गया”
और कोई प्यारा सा नगमा सुना देते
जो सुन ये दिल फिर एक बार पिघल जाता
जो ठीक नहीं होता
जो हुआ ठीक ही हुआ
गर तुम होते तो फिर मेरे किसी दोस्त के नाम पर झल्ला उठते
नाजायज़ समझते एक पाक सी दोस्ती को
और मैं नादां
फिर एक और साथी छोड़ बैठती तुम्हारी हँसी की खातिर
जो ठीक नहीं होता
जो हुआ ठीक ही हुआ
गर तुम होते तो फिर मुझे हर तरह से बदलना चाहते
और मैं बावली बदलती भी
लेकिन होती कुछ और, और होती कुछ और
जी पाती नहीं और अपनी कश्मकश जताती भी नहीं
जो मेरे अस्तित्व के लिए ठीक नहीं होता
यही सब सोच के तसल्ली कर लिया करती हूँ
जी लिया करती हूँ
कोशिश करती हूँ वो प्यार भरी यादें ना ही सोचूं तो ठीक है
क्यूंकि फिर मुझे तुम्हरे बेहद याद आएगी
जो की समाज के हिसाब से अब ठीक नहीं होगा
सब कुछ समझ आता है मुझे
बस एक सवाल पे अटक जाती हूँ
उसमे, या यों कहूं की उनमे, वही देख कर तुम आकर्षित हुए,
जो सब कुछ तुम मुझमे बदल देना चाहते थे!
तुम्हारी हर बात मानी मैंने, हर ज़िद पूरी की
तुम्हारे लिए तुम्हारे हिसाब की भी बनी
फिर भी बेवफाई क्यों?
खैर… जो हुआ ठीक ही हुआ
गर तुम होते तो फिर आज मैं, मैं न होती
और शायद वो मेरे वजूद के लिए ठीक नहीं होता…..
Beautiful writing!
Thank you 🙂
beautifull written mam✌