जड़ों के क़रीब आती है मिटटी की ख़ुश्बू
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जड़ों के क़रीब आती है मिटटी की ख़ुश्बू

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कल शाम को छपरा पहुंची | माजी पापा (दादा दादी) से मिलकर हमेशा अच्छा लगता है, लाज़मी है | लेकिन जब से मेरी शादी हुई है घर के नाम बदल गए हैं | घर मायके और ससुराल में बंट गया है | नहीं-नहीं ये दुःख या हमदर्दी की बात नहीं है, कम से कम मेरे लिए नहीं | पहले एक घर था अब दो-दो हैं, पहले एक परिवार था अब दो-दो हैं | इन फैक्ट, अब तो हर जगह ज़्यादा प्यार और सम्मान मिलता है | तो इसलिए अब माजी पापा के पास आकर, और ज़्यादा प्यार और स्नेह की पात्र होती हूँ |

जब मेरे पापा मुझे फ़क्र की नज़रों से देखते हैं और मेरी तारीफ़ों के पूल बाँध देते हैं, उस पल में जीवन सफ़ल महसूस होता है और जब दादी मेरे दूसरे घर यानी ससुराल की बड़ाई करते नहीं थकतीं तो एक अलग सा सुकून महसूस होता है | अच्छा लगता है |

लिखने पढ़ने के जीन्स मुझे यहीं से मिले हैं – मेरी डबल पी एच डी दादी और लेखक व रिटायर्ड डीन दादू ने अपनी ज़िन्दगी में साहित्य को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया है | बचपन से हमे किताबें और कॉमिक्स पढ़ने की आदत डाल दी गयी और शायद इसलिए आज मैं थोड़ा बहुत लिख लेती हूँ |

इस बार चार दिनों के लिए यहाँ आयी हूँ | पापा के पेड़ के आम लगभग पकने लगे हैं लेकिन अभी दो-चार दिन तक स्वाद चढ़ा रहेगा | तो मुझे किशनभोग, दशहरी, आम्रपाली, मालदह और मिठूआ आम नसीब हुए – यूँ कहना गलत नहीं होगा कि मैंने अमृत चख लिया | पेट ख़राब होने की चिंता किये बिना रात से अभी तक ३-४ बार अलग अलग किस्म के आम खा चुकी हूँ | पिता डॉक्टर हैं तो कॉन्फिडेंस रहता है , मालूम है कि दस्त लगने पर टीनींडाज़ोल के दो डोज़ से तबियत सही हो जाएगी |

इस बार छपरा आ कर एक नयी चीज़ जानी मैंने | असल में हमारा पुराना घर तोड़ कर नया घर बनाया जा रहा है |अभी तक मेरा मानना था कि घर से लगाव बहुत तगड़ा होता है | कोई घर टूट जाये तो बहुत दुःख होगा शायद, लेकिन इस दफ़े पता चला कि मैं ग़लत थी | लोग और रिश्ते मायने रखते हैं | घर टूट कर सौ बार नए सिरे से बन जाए तो नयी यादें उनमे बसाई जा सकती हैं | मैं ख़ुद को ख़ुशनसीब मानती हूँ कि मेरे पास दो भरे पूरे परिवार हैं – माँ बाप और सास ससुर दोनों का साया सर पर है और बिलकुल अँधा प्रेम देने वाले नाना नानी और दादा दादी भी जीवन को रौशन करते हैं |

जो लोग बाहर रहते हैं, घर से दूर रहते हैं , उनसे कहना चाहती हूँ कि घर आया करिये | ज़रूरी होता है | आख़िर आज हम जो भी हैं जहाँ भी हैं अपनी जड़ों की वजह से हैं | मेरे लिए यहाँ आना एक बहुत बड़ा प्रेरणास्त्रोत है क्योंकी जितनी बार बाबूजी के नाम पर नज़र पड़ती है, मन करता है मैं भी कुछ ऐसा करूँ कि पुश्तों तक मेरा नाम लोगों को याद रहे | हमारा अस्तित्व ही हमारे परिवार और मिटटी की देन है | ये याद रखने वाले हमेशा सुखी रहते हैं |

About Post Author

Surabhi Pandey

A journalist by training, Surabhi is a writer and content consultant currently based in Singapore. She has over seven years of experience in journalistic and business writing, qualitative research, proofreading, copyediting and SEO. Working in different capacities as a freelancer, she produces both print and digital content and leads campaigns for a wide range of brands and organisations – covering topics ranging from technology to education and travel to lifestyle with a keen focus on the APAC region.
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