मकर संक्रांति

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The Vent Machine wishes you a Happy Makar Sankranti 2019.  आज मकर संक्रांति है ।इसे बिहार में सकरात या दही चूड़ा भी बुलाते हैं । हमारे यहाँ कुछ त्योहार बहुत बड़े पैमाने पे मनाये जाते हैं - जैसे दुर्गा पूजा या दिवाली । सकरात उनमे से नहीं है क्यूंकि इस पर्व में ज़्यादा लाम-काफ़ नहीं... Continue Reading →

गर कवी न होता…

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तस्सवुर का आलम और आशिकी का मौसम ये सारे कितने बेनूर होते गर कवी न होता... चाहत की मंज़िल और इश्क़ का मुक़ाम ये सारे कितने बेजुनून होते गर कवी न होता... उसको पा कर खोना या खोने में पा लेना इनका मज़ा कितना फीका पड़ जाता गर कवी न होता... दिल्लगी से दिलजले तक... Continue Reading →

घर से घर तक

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पच्चीस दिन बीत गए | सिंगापुर से दिल्ली, दिल्ली से छपरा, वहां से बेगूसराय, वहां से पटना और फिर दिल्ली - आज दिल्ली से सिंगापुर - ये बीता महीना काफ़ी इवेंटफ़ुल रहा | अपनों से मिली, उनके साथ वक़्त बिताया और नयी यादें बस्ते में बटोर कर ले जा रही | अपनी वेबसाइट के लिए... Continue Reading →

Happy Father’s Day🙏🏻☺️❤️

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सर पे चार-चार पिता स्वरुप पेड़ों की छांव में ज़िन्दगी कड़ी से कड़ी धूप भी बिना झुलसे निकल जाती है | नाना जी, पापा (दादा जी), डैडी और पापा (ससुर जी) को फादर्स डे पर प्रणाम और प्यार | #happyfathersday #theventmachine #tvmtheblog

बस यूँ ही

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तो एक और सफ़र ख़त्म हुआ... इस बार कई वर्ष बाद माँ के साथ लगभग बीस दिन रही... सिंगापुर से लेकर बेगूसराय तक का ये सफ़र बहुत ख़ूबसूरत रहा.. इस बार एक बात का एहसास हुआ कि एक बेटी से उसका मायका कोई नहीं अलग कर सकता... लड़कियों में अजीब शक्ति होती है और दिल... Continue Reading →

माँ कहती है

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जब हम छोटे थे मम्मी एक बात हमेशा कहती थी कि कोई भी तालीम कभी ज़ाया नहीं जाती | वो कहती थी कि जहाँ जो ज्ञान मिल रहा है - किताबी या बहार से - उसको सीरियसली लो; कब कौन सा ज्ञान कहाँ काम आएगा किसे पता | मैं बचपन से ख़ुराफ़ाती हूँ | सिर्फ़... Continue Reading →

खिलौने और बचपन

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अक्सर घरों में बच्चों के लिए ढेर सारे सॉफ्ट टॉयज़ लाये जाते हैं | ये एक आम बात है | हमारे घर में भी काफी सारे सॉफ्ट टॉयज़ हैं लेकिन हमारे सन्दर्भ में इस बात के पीछे एक खासियत है और वो यह कि ये टॉयज़ किसी बच्चे के लिए नहीं बल्कि मेरी माँ के... Continue Reading →

मुट्ठी भर मिट्टी पैक कर लूँ

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मन कर रहा है कि मुट्ठी भर मिट्टी पैक कर लूँ वो खाये हुए आमों की गुठलियां भी सुखा कर रख लूँ बैग में थोड़ी सी दादी की बच्चों सी किलकारी और दादू से मिली नसीहतें थोड़ा वो आदर जो बस इसलिए मिलता है कि इस घर की पोती हूँ वो पचास रुपये जो दुकानदार... Continue Reading →

जड़ों के क़रीब आती है मिटटी की ख़ुश्बू

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कल शाम को छपरा पहुंची | माजी पापा (दादा दादी) से मिलकर हमेशा अच्छा लगता है, लाज़मी है | लेकिन जब से मेरी शादी हुई है घर के नाम बदल गए हैं | घर मायके और ससुराल में बंट गया है | नहीं-नहीं ये दुःख या हमदर्दी की बात नहीं है, कम से कम मेरे... Continue Reading →

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