मन कर रहा है कि मुट्ठी भर मिट्टी पैक कर लूँ
वो खाये हुए आमों की गुठलियां भी सुखा कर रख लूँ बैग में
थोड़ी सी दादी की बच्चों सी किलकारी
और दादू से मिली नसीहतें
थोड़ा वो आदर जो बस इसलिए मिलता है
कि इस घर की पोती हूँ
वो पचास रुपये जो दुकानदार ने नाम के ख़ातिर डिस्काउंट दिया
वो टिकट का आधा फटा हिस्सा जो कहीं मुचड़ा पड़ा है
सब रख लेती हूँ
थोड़ी सी वो दाल के छौंक की खुशबू
और वो देसी घी के तड़के का ज़ायका
वो कहानियां और किस्से जो हम खाने के टेबल कर करते हैं
वो दो आंसू जो मम्मी ने सेंटी होकर उस रोज़ बहाये थे
वो हमारे घर के पालतू लाडलों की भीगी सी नाक और हिलती हुई पूँछ के साथ मिला लाड
ये सब रख लेती हूँ
एक पिटारा संजोना है
कुछ यादें कुछ सामान कुछ बातें रखनी हैं उसमे
ये सब पैक कर लेती हूँ
क्यूंकि कुछ रोज़ बाद जब दूर किसी खिड़की से बाहर देखते हुए
अकेली चाय पियूँगी
तो सब याद आएगा
उस वक़्त नम आँखों से जब ये पिटारा खोलूंगी
तो दादी, दादा, माँ और अपने देस को शायद थोड़ा करीब महसूस करूँ
चलती हूँ
पैकिंग करनी है …
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