हाँ तो ट्रेन लेट है… यही कुछ आठ-दस घंटे से.. लेकिन ये तो आम बात है भारतीय रेल के लिए.. वो भी दिल्ली बिहार रूट में तो अगर टाइम पे पहुंच जाएं तो घबराने वाली बात होती है | डिप वाली गन्दी सी चाय.. चना मसाला और सहयात्रियों की कहानियों की आड़ में रास्ता काटा जा रहा है |
जब मैं छोटी थी मम्मी बेगुसराय में खूब सिरिअल्स देखती थी – ये रिश्ता क्या कहलाता है, कुसुम, कसम से और न जाने बालाजी की कौन कौन सी रचनायें | ख़ैर किसे पता था एक दिन ट्रेन में साथ सफ़र करते हुए भी माँ “वूट” पर सिरिअल्स देखेगी | ये दिन भी देख ही लिया | हमारे कम्पार्टमेंट में एक अंकल हैं साथ … वो डी पी एस में फिजिक्स पढ़ाते हैं, आंटी जूलॉजी में पि.जी हैं और दो बड़े प्यारे बच्चों की लाड़ली माँ | उनसे देश और समाज की बात चीत में भी समय व्यतीत हो रहा है |
जिस ट्रेन को सुबह ९:३० बजे बरौनी होना था वो साढ़े ग्यारह बजे गोरखपुर भी नहीं पहुंची है | देखते हैं सफ़र में आगे और क्या-क्या होता है |
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