से बड़ी इस दुनिया में कोई सच्चाई नहीं होती है
इस एहसास को हम ज़िन्दगी जीने में मशगूल होकर अक्सर भूल जाते हैं
थोड़ा अजीब लगेगा आपको सुनकर लेकिन मुझे मौत समझ में नहीं आती
क्यों कोई दुनिया से चला जाता है ?
जो भला है, अच्छा काम कर रहा है,
क्यों उसे भगवान् हमसे दूर कर देते हैं ?
इतने डाकू, चोर, उचक्के धड़ल्ले से ज़िन्दगी जीते हैं
और उनकी जगह भले इंसान बस एक झटके में चले जाते हैं ..
क्यों ?
हाल में मैंने दो क़रीबी लोगों को एक झटके में
एक ही हादसे के हाथों खो दिया
एक बाज़ के नाम से लिखने वाला प्यारा दोस्त था
और दूसरा “मूल” नाम का बड़े भाई जैसा साथी
एक ने हमेशा मेरी रचनाओं को, मेरे काम को, लायक से ज़्यादा इज़्ज़त दी थी
और दुसरे ने मुझे हमेशा कामयाबी की फ़लक पे बिठा कर सराहा था
बाज़ से मैं 7 जून को मिलने वाली थी
हमारी चैट हुई थी व्ट्सॅअप पर
मूल सर के साथ तीन प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा था
उनका फेसबुक पर रविवार रात को मैसेज आया था
सिंगापुर इंडिया से ढाई घंटे आगे है
उस वक़्त मैं नींद में थी
मैसेज के बीप से नींद खुली लेकिन सोचा की सुबह जवाब देती हूँ
उसी रात लगभग 3 या 4 बजे एक सड़क हादसे में दोनों चल बसे
अब 7 जून में दिल्ली में होने से डर लग रहा है
और फेसबुक पर मैसेंजर में मूल सर का मैसेज अब भी अनरेड है
मेरी माँ सिंगापुर आयी हुई हैं
इसलिए थोड़ी व्यस्त थी
तो पता भी काफी देर से चला
जब से मालूम हुआ है
बहुत कोशिश कर रही की उनके परिजनों के लिए प्रार्थना करूँ और थोड़ा ध्यान हटा सकूँ
लेकिन रात को नींद नहीं आ रही आज कल…
व्ट्सअप्प, फेसबुक हर जगह पहली दफ़े भगवान् की तस्वीर लगायी है
क्यूंकि उनसे भीक मांग रही दिन रात
एक – की बाज़ और मूल सर के परिवार को शक्ति दें
दूसरा -की उसी हादसे में ज़ख़्मी हुए शाहिद सर को ठीक कर दें
लेकिन सदमा गहरा है
जी रही हूँ – सब कर रही
ब्लॉग्स लिखना, माँ को सिंगापुर दिखाना
लेकिन ज़हन का एक हिस्सा है जो उस पल में अटका है
जब अजीत पणिकर सर से बात कर के दुःख बयान किया था कि ये क्या हो गया
रूह के एक टुकड़ा वहां अटका है जब मूल सर के परिवार से पता चला कि शहीद सर ICU में हैं
मौत अजीब है
कब कहाँ किसे अपने आगोश में ले ले पता नहीं
इसलिए जब तक हैं और जो-जो हैं
प्यार, इज़्ज़त और वक़्त बाटें
पता नहीं
कब कौन साथ छोड़कर चला जाये
पता नहीं
कब हम ही इस दुनिया से चले जाएँ…
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