एक लड़कपन सा था एक बेबाकी सी थी
बात बचपन की कुछ अलग ही थी
न नौकरी की चिंता ना ज़िन्दगी के ग़म
खुशियों से भरा होता था हर एक मौसम
स्कूल से घर और घर से ट्यूशन
टीवी पे आता था सिर्फ दूरदर्शन
नब्बे की दशक में मैं टीनेजर थी
पढ़ने में ठीक, लेकिन बदमाश मेजर थी
मम्मी की डाँट मैंने भी खूब खायी है
अब तो इन आखों में यादें भी धुँधलायीं हैं
जिस रोटी तरकारी की कीमत नहीं समझती थी
जब घर के खाने को माँ लाड से परोसती थी
अब उन पलों को याद कर अक्सर मैं रोती हूँ
एल्बम में पड़ी फोटोज़ को प्यार से संजोती हूँ
वाक्ये तो कई हैं, क्या क्या सुनाऊँ
वो साइकिल चलाना या उसपर से गिर जाना बताऊँ
वो बगल वाली आंटी के आँगन से फल चुराना
या सत्यनारायण की पूजा में सिर्फ प्रसाद के लिए जाना
वो बर्थडे पर स्कूल में दोस्तों को चॉकलेट बांटना
वो पहली बार किसी की याद में दिन-रात काटना
वो दोस्तों से झगडे फिर शाम को याराना
वो डैडी के साथ बहार आइस-क्रीम खाने जाना
कुछ पाक सा था, एक मासूमियत सी थी
बात बचपन की कुछ अलग ही थी
बात बचपन की कुछ अलग ही थी…
very nice mam
Thanks