कश्मकश में जी रही
क्या ग़लत क्या सही
कुछ पता नहीं कुछ अता नहीं
कहना कुछ चाहती हूँ
करना कुछ और
हो कुछ जाता है
आता समझ कुछ और
अपने दिल से मजबूर हूँ
दिमाग की ग़ुलाम
बेबस हूँ बेवक़ूफ़ हूँ
और लोगों में बदनाम
कश्मकश में जी रही
क्या गलत क्या सही
कुछ पता नहीं कुछ अता नहीं
इधर से तक़ाज़ा , उधर से तग़ाफ़ुल
अजब खींचातानी में पैगम्बर है 🙂
Beautiful and So True 🙂
Beautiful
Beautiful